- खागा तहसील का सबसे बड़ा होता है मोहर्रम
- 5 मोहर्रम को निकला था मासूम अली असगर का झूला एवं 6 मोहर्रम को निकली थी अली अकबर की जरी मुबारक
- आज 7 मोहर्रम को निकलेगा अलम जुलूस
फतेहपुर। खागा तहसील के थाना सुल्तानपुर घोष अंतर्गत बहेरा सादात में मुहर्रम की छठवीं के अवसर पर मजलिस के बाद ज़री उठाई गई जिसके बाद इमाम चौक पर मन्नतों का दौर शुरू हुआ फिर नौहा ख्वानी के साथ मातम भी हुआ।
बताते चलें कि खागा तहसील क्षेत्र का सबसे बड़ा मोहर्रम का कार्यक्रम बहेरा सादात गांव में होता है। इसी क्रम में पांचवी मोहर्रम यानी शुक्रवार (जुमा) को करबला के मैदान में शहीद हुए इमाम हुसैन के सबसे छोटे बेटे छः माह के अली असगर की याद में झूला निकाला गया और शनिवार को छठवीं मोहर्रम की तारीख पर मजलिस के बाद इमाम हुसैन के बड़े साहबजादे शहीद अली अकबर की याद में मुबारक जरी निकाली गई जिसके बाद इमाम बाड़े पर दरुदो - फातिहा के साथ ही चादर चढ़ाने और मन्नतें मांगने का सिलसिला शुरू हुआ। इस दौरान उपजिलाधिकारी खागा अजय पाण्डेय के साथ ही पुलिस क्षेत्राधिकारी ब्रजमोहन राय एवं सुल्तानपुर घोष थानाध्यक्ष राजेन्द्र त्रिपाठी के साथ अन्य पुलिस बल तथा पीएसी बल व राजस्वकर्मी भी उपस्थित रहे हैं। बताना जरूरी होगा कि कार्यक्रम पारंपरिक तरीके से सकुशल संपन्न हुआ है।
कार्यक्रम संचालक/आयोजक शहंशाह आब्दी (पूर्व प्रधान एवं वरिष्ठ पत्रकार) ने बताया कि पूर्व से चली आ रही परंपरा में कुछ शरारती तत्वों की कोशिश नाकाम रही और प्रशासन तथा गांववासियों के सहयोग से धार्मिक कार्यक्रम सकुशल संपन्न हुआ है। इस दौरान श्री आब्दी ने कार्यक्रम को सकुशल संपन्न कराने वाले सभी जिम्मेदार अधिकारियों/कर्मचारियों, पत्रकारों एवं आए हर धर्म एवं समुदाय के जायरीनों का धन्यवाद ज्ञापित किया है। इस दौरान लंगर का सिलसिला लगातार जारी रहा है। वहीं नौहा व मातम भी लगातार जारी रहा है। सैय्यद मुशब्बर आब्दी नौहाखान ने अपने कलाम (नाैहा) पेश करते हुए करबला के शहीदों को पुरसा दिया जिससे सारा माहौल गमें हुसैन में या हुसैन की सदाओं से गूंजता रहा है।
मुबारक जरी का इतिहास
जरी का इतिहास बताते हुए 82 वर्षीय मास्टर अली नाजिम उर्फ अलमदार ने बताया कि हमारे पूर्वजों के मुताबिक तकरीबन 300 से भी अधिक साल पहले इस बहेरा सादात गांव के मोमनीन द्वारा करबला (इराक़) से जरी मुबारक हिंदुस्तान में लाई गई थी और वक्फ जाफरी बेगम (छोट्टा बीबी का इमामबाड़ा) के यहां स्थापित की गई थी तब से आज तक उसी दर से उठाकर जरी मुबारक इमामबाड़ा पर रखी जाती है। वहीं आगे बताया कि मरहूम तंजीम हुसैन आब्दी के घराने से जरी उठाने का सिलसिला लगातार जारी है जिसको उठाने के लिए चार हट्टे - कट्टे नौजवानों की जरूरत होती है क्योंकि जरी का वजन लगभग एक कुंटल होता है। वर्तमान में तकरीबन 20 वर्षों से इस जरी को शहंशाह आब्दी एवं ताज आब्दी पुत्रान मरहूम मोहम्मद जलीस आब्दी, मोहम्मद अब्बास पुत्र मरहूम बख्शीस अब्बास एवं तबरेज़ पुत्र मरहूम नजमुल हसन उठाते आ रहे हैं और उससे पूर्व इनके पूर्वज उठाते आए हैं।
आज सातवी मोहर्रम को उठेगा अलम
कार्यक्रम आयोजक शहंशाह आब्दी ने बताया कि सातवीं मोहर्रम यानी आज तकरीबन 11 बजे सुबह अलम के शक्ल में नसीर हुसैन के बड़े इमामबाड़ा से जुलूसे हुसैनी निकाला जाएगा और शाम 7 बजे शहंशाह आब्दी के दरवाजे स्थापित इमामबाड़ा से हजरत अब्बास का अलम बरामद होगा जो अपने कदीमी रास्ते से गश्त करते हुए बड़े इमामबाड़ा पर समाप्त होगा।
@शीबू खान
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