शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

फतेहपुर से यूपी तक: मायावती, अखिलेश और योगी की सरकारों पर जनता का नजरिया

शीबू खान 

- जनपद के युवा, बुजुर्गों एवं महिलाओं ने बताई राजनीतिक बिसात

- विश्लेषण में युवाओं ने दिखाई रुचि

उत्तर प्रदेश की राजनीति में मायावती, अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ तीन ऐसे नाम हैं, जिन्होंने अलग-अलग दौर में सत्ता संभाली और अपनी-अपनी कार्यशैली से जनता पर असर छोड़ा। लेकिन सवाल यह है कि प्रशासनिक सख़्ती, विकास कार्य, महंगाई नियंत्रण और न्याय व्यवस्था में किसका पलड़ा भारी रहा? आज भी प्रदेश में जहां भाजपा की राजनीति अव्वल दर्जे पर दिख रही है तो विपक्ष पीडीए के नाम पर अपने आप को 2027 से पहले अव्वल बनाने की जद में नजर आ रहा है। प्रदेश में भाजपा की हर एक काट में पूर्व मुख्यमंत्री एवं समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी टीम के साथ भाजपा पर हर मंच चाहे फिर वो संसद का सदन हो, जनसभा हो या फिर सोशल मीडिया प्लेटफार्म की जुबानी जंग ही क्यों न हो अखिलेश यादव का डंका बजता दिखाई देता है। वैसे विधानसभा में समाजवादी पार्टी के शेर एवं शेरनियां भी कम गरजते नजर नहीं आते हैं। वैसे भी इन दिनों कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग के साथ ही वोट चोर - गद्दी छोड़ की राजनीति चली है उससे बहुत कुछ बदलाव आ नजर आता दिख रहा है। जानकारों का मानना है कि बिहार का चुनाव राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता तय करेगी। खैर उत्तर प्रदेश में सपा का पीडीए भी जोर मचा रखा है। इस सबकी लाइन में बसपा कहीं पर अपना दम दिखाते नहीं दिख रही है। वैसे आकाश आनंद पर मायावती ने फिर से दांव खेला है पर उससे बहुत कुछ हासिल होता नजर नहीं आएगा। खैर यूपी के विधानसभा चुनाव 2027 में होने हैं और आगामी वर्ष 2026 में त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव शेष हैं। देखना होगा किसकी क्या रणनीति बनती है।
इसी कड़ी में जनपद के युवा, बुजुर्ग एवं महिलाओं को शामिल करते हुए तीनों सरकारों का संक्षिप्त विश्लेषण तैयार किया गया है। इसी विश्लेषण के आधार पर जल्द ही ब्लॉक स्तरीय मीडिया रिपोर्ट पाठकों को प्रेषित की जाएगी और जनता से रूबरू होकर योजनाओं की हकीकत पर भी बात की जाएगी। नीचे प्रस्तुत है विश्लेषण का सारांश।


मायावती का कार्यकाल – सख़्ती लेकिन सीमित विकास

स्थानीय नागरिकों से इस विषय में राय जानने पर स्पष्ट हुआ है कि मायावती के शासनकाल को प्रशासनिक सख़्ती और नौकरशाही पर पकड़ के लिए जाना जाता है। पुलिस व्यवस्था काबू में रही, लेकिन विकास कार्यों का लाभ गांव-गांव तक सीमित रहते हुए जनता तक विकास कार्य नहीं पहुँच पाया। दलित राजनीति और पार्क निर्माण पर अधिक फोकस रहा, जिसके चलते विपक्ष ने “जनता से दूरी” का आरोप लगाया लेकिन जनता ने भी यही बात दोहराया कि विकास कार्यों से हम दूर रहें।
 

अखिलेश यादव का दौर – तकनीक और योजनाएँ मजबूत, पर कानून-व्यवस्था ढीली

इन्हीं नागरिकों के मुताबिक अखिलेश यादव ने आईटी पार्क, एक्सप्रेस-वे और लैपटॉप वितरण जैसी योजनाओं से युवाओं को आकर्षित किया। समाजवादी पेंशन योजना और किसान हितैषी घोषणाएँ भी कीं। लेकिन अपराधों में वृद्धि और दबंगई पर लगाम न लगने से उनकी सरकार की छवि कमजोर हुई।


योगी आदित्यनाथ का राज – बुलडोज़र मॉडल और सीधा लाभ

इन्हीं नागरिकों के अनुसार योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपराधियों के खिलाफ बुलडोज़र नीति अपनाई, जिससे कानून-व्यवस्था पर सख़्ती नजर आई। मुफ्त राशन, उज्ज्वला योजना और किसान सम्मान निधि से जनता को सीधा फायदा पहुँचा। विपक्ष महंगाई और बेरोज़गारी को लेकर सवाल उठाता रहा, लेकिन जनता के बीच “कड़क छवि” बनी रही।


विश्लेषण का निष्कर्ष

मायावती प्रशासनिक सख़्ती के लिए, अखिलेश विकास और तकनीक के लिए, जबकि योगी आदित्यनाथ कानून-व्यवस्था और सीधी योजनाओं के लाभ के लिए पहचाने जाते हैं।
आज जनता के सामने महंगाई और रोजगार सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसे में सवाल यही है कि आने वाले समय में जनता किस मॉडल को तरजीह देगी – मायावती का सख़्त प्रशासन, अखिलेश का विकास मॉडल या योगी का बुलडोज़र शासन?

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