गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

2 अक्टूबर : गांधी और शास्त्री की विचारधारा आज भी प्रासंगिक

-"दो महापुरुष, दो विचारधाराएँ, एक ही संदेश – राष्ट्र सर्वोपरि"

भारत का इतिहास 2 अक्टूबर के बिना अधूरा है। यह वह दिन है जब राष्ट्र को दो ऐसे महापुरुष मिले जिन्होंने अपने जीवन, संघर्ष और विचारों से देश ही नहीं, पूरी दुनिया को नई दिशा दी – महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री। गांधी जी को "राष्ट्रपिता" के रूप में और शास्त्री जी को "जननायक" के रूप में याद किया जाता है। दोनों की विचारधाराएँ भले ही अलग-अलग परिस्थितियों में विकसित हुईं, लेकिन उनका मूल सार एक ही था – जनकल्याण, सादगी और राष्ट्रहित।

दोनों महानुभावों को उनकी जयंती पर शत शत नमन!!!
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गांधी जी की विचारधारा : सत्य और अहिंसा का मार्ग

महात्मा गांधी का पूरा जीवन सत्य और अहिंसा की प्रयोगशाला रहा। उनके विचारों का मूल यह था कि सत्य ही ईश्वर है और अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म। गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन को हथियारों की जगह नैतिक बल से आगे बढ़ाया। उनका मानना था कि किसी भी समस्या का स्थायी समाधान हिंसा से नहीं, बल्कि संवाद, सत्य और धैर्य से निकल सकता है। ग्राम स्वराज की उनकी परिकल्पना आज भी आत्मनिर्भर भारत की आधारशिला है। स्वदेशी, स्वच्छता, आत्मनिर्भरता और सेवा-भाव जैसे उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं।
गांधी जी की विचारधारा हमें यह सिखाती है कि राजनीति में नैतिकता होनी चाहिए और जीवन में सरलता।

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शास्त्री जी की विचारधारा : सादगी और राष्ट्र प्रथम

लाल बहादुर शास्त्री, जिन्हें गांधी जी की विचारधारा का सच्चा अनुयायी माना जाता है, ने स्वतंत्र भारत को सादगी और ईमानदारी का आदर्श दिया। वे मानते थे कि राष्ट्र निर्माण के लिए अनुशासन और परिश्रम आवश्यक है।
उनका नारा "जय जवान, जय किसान" केवल शब्द नहीं, बल्कि भारतीय समाज की रीढ़ – सैनिक और किसान – को सम्मान देने का विचार था। शास्त्री जी ने दिखाया कि सच्चा नेतृत्व पद या विलासिता में नहीं, बल्कि त्याग और सेवा में है। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय उन्होंने देशवासियों को धैर्य और साहस से एकजुट किया और विपरीत परिस्थितियों में भी आत्मविश्वास से भरे रहे।
उनकी विचारधारा हमें यह सिखाती है कि सरकार का हर कदम जनता के कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि सत्ता के सुख के लिए।


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समानता और अंतर

गांधी जी और शास्त्री जी की विचारधाराएँ समय और परिस्थिति अनुसार विकसित हुईं। गांधी जी ने विदेशी शासन से मुक्ति के लिए सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया, वहीं शास्त्री जी ने स्वतंत्र भारत को आत्मनिर्भरता, कृषि और सुरक्षा की दिशा दी।
लेकिन दोनों की जीवन शैली सादगीपूर्ण, राजनीति में नैतिकता और जनता के प्रति उत्तरदायित्व पर आधारित थी। दोनों ने यह संदेश दिया कि नेता वह है जो जनता के बीच से उठे और जनता के लिए जिए।


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आज के संदर्भ में प्रासंगिकता

आज जब समाज भौतिकवाद, हिंसा, भ्रष्टाचार और लालच से जूझ रहा है, गांधी और शास्त्री जी की विचारधाराएँ हमें नई दिशा देती हैं।

गांधी जी का "सत्य और अहिंसा" हमें सामाजिक सौहार्द और वैश्विक शांति की राह दिखाता है।
शास्त्री जी का "जय जवान, जय किसान" हमें याद दिलाता है कि राष्ट्र की मजबूती खेत और सीमा पर खड़े लोगों से है।

दोनों की सादगी हमें यह प्रेरणा देती है कि वास्तविक महानता विलासिता में नहीं, बल्कि जनसेवा और नैतिकता में है।

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निष्कर्ष

2 अक्टूबर केवल दो महापुरुषों की जयंती का दिन नहीं, बल्कि यह हमें आत्मनिरीक्षण का अवसर देता है। गांधी और शास्त्री जी की विचारधाराएँ आज भी हमारे लिए मार्गदर्शक हैं। यदि हम उनके सिद्धांतों को जीवन और राजनीति में उतार सकें, तो न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया एक बेहतर और शांतिपूर्ण स्थान बन सकती है।
इस प्रकार 2 अक्टूबर हमें हमेशा यह संदेश देता है –
“सत्य, अहिंसा, सादगी और परिश्रम ही वास्तविक शक्ति है।”

शीबू खान
(राष्ट्रीय महासचिव - साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन)

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