छांगुर बाबा से जुड़े सनसनीखेज खुलासे आए दिन किए जा रहे हैं। इसमें संदेह नहीं होना चाहिए कि, "भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के लिए छांगुर बाबा एक बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं।"
छांगुर बाबा के संबंध में आए दिन किए जा रहे खुलासों से पता चलता है कि कैसे एक व्यापक नेटवर्क देश में अपनी जड़ें जमा चुका था, जिसे अरबों रुपये की विदेशी फंडिंग मिल रही थी और जिसने हजारों लोगों को अपने गैंग में शामिल कर लिया था?
यह स्थिति स्वाभाविक रूप से एक गम्भीर सवाल खड़ा करती है कि, "आखिर हमारा खुफिया विभाग क्या कर रहा था, जब इतना बड़ा षड्यंत्रकारी नेटवर्क आकार ले रहा था? यह नेटवर्क एक दो दिनों या महीनों में तैयार नहीं हो गया होगा ?"
यह मानना मुश्किल है कि इतनी बड़ी गतिविधियां, जिसमें व्यापक स्तर पर लोगों को शामिल करना और भारी विदेशी फंडिंग का प्रवाह शामिल है, बिना किसी पूर्व सूचना या संकेत के संचालित हो सकती थीं। आमतौर पर, ऐसे बड़े पैमाने के ऑपरेशंस में कई चरण होते हैं, जिनमें प्रारंभिक भर्ती, वित्तीय लेन-देन, प्रशिक्षण और गुप्त संचार शामिल हैं। ऐसे में एक सक्षम खुफिया तंत्र को इन गतिविधियों के शुरुआती चरणों में ही अलर्ट मोड पर हो जाना चाहिए था।
छांगुर बाबा के प्रति प्रकाश में आए घटनाक्रम से भारतीय खुफिया एजेंसियों की कार्यप्रणाली और उनके समन्वय पर गम्भीर सवाल खड़े होते हैं कि - क्या खुफिया विभागों के पास पर्याप्त व उचित आधुनिक संसाधन नहीं हैं ?
क्या विभिन्न एजेंसियों के बीच जानकारी का आदान-प्रदान ठीक से नहीं हो रहा है या फिर यह कहीं और से हुई चूक का परिणाम है छांगुर बाबा ?
यह भी सम्भव है कि खुफिया जानकारी मौजूद रही हो, लेकिन उसे गम्भीरता से नहीं लिया गया हो, या फिर उस पर समय रहते कार्रवाई करने का प्रयास नहीं किया गया हो और अनदेखा कर दिया गया हो !
ऐसा भी देखने को मिलता है कि ऐसे हाई प्रोफ़ाइल मामलों में, राजनीतिक दबाव, नौकरशाही की ढिलाई या आंतरिक कमियों के कारण महत्वपूर्ण चेतावनियों को नजरअंदाज अक्सर कर दिया जाता है।
छांगुर बाबा के नेटवर्क का खुलासा इस बात की याद दिलाता है कि भारत जैसे विशाल और विविध देश में सतर्कता और सक्रिय खुफिया तंत्र कितना महत्वपूर्ण है?
यह सिर्फ एक आपराधिक गिरोह का मामला नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा एक गम्भीर मामला है।
विदेशी फंडिंग और बड़े पैमाने पर भर्ती का अर्थ है कि इस नेटवर्क का उद्देश्य सिर्फ आपराधिक लाभ कमाना नहीं हो सकता, सिर्फ धार्मिक षड्यंत्र नहीं हो सकता है, बल्कि इसके पीछे देश को अस्थिर करने या किसी अन्य बड़े एजेंडे को आगे बढ़ाने की मंशा भी हो सकती है!
कुछ भी हो लेकिन, अब समय आ गया है कि इस मामले की गहराई से जांच की जाए, न केवल नेटवर्क के सदस्यों को पकड़ने के लिए, बल्कि उन कारणों का भी पता लगाने के लिए जिनकी वजह से हमारा खुफिया तंत्र इस खतरनाक षड्यंत को रोकने में विफल रहा!
भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए खुफिया एजेंसियों को अपनी रणनीतियों, प्रौद्योगिकियों और समन्वय को मजबूत करने की आवश्यकता है अन्यथा, छांगुर बाबा जैसे प्रकरण बार-बार देखने को मिलते रहेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरे पैदा करते रहेंगे।
@ श्याम सिंह 'पंवार' (वरिष्ठ पत्रकार - कानपुर)
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