शीबू खान
- प्रशासन बना मूकदर्शक, थाना/चौकी के सामने से निकलते ट्रैक्टर - ट्रालियां
- योगी आदित्यनाथ के फरमानों का हो रहा खुला उल्लंघन
- क्या जनपद में किसी बड़े हादसे के इंतेजार में है प्रशासन?
फतेहपुर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बार-बार चेतावनी दे चुके हैं कि ट्रैक्टर-ट्रॉली कृषि कार्यों के लिए है, लोगों को ढोने का साधन नहीं। यह आदेश किताबों में दर्ज है, लेकिन फतेहपुर की सड़कों पर इसका कोई असर दिखाई नहीं देता। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सार्वजनिक सुरक्षा को लेकर जारी सख्त दिशा-निर्देशों के बावजूद जिले में ट्रैक्टर और खुले ट्रॉलियों में तीर्थयात्रियों की ठूंस-ठूंस कर आवाजाही लगातार जारी है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रशासन इस खतरनाक प्रथा के खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम साबित हो रहा है, जिससे एक बड़े हादसे का खतरा मंडरा रहा है। ग्रामीण अंचलों में रोज देखा जा सकता है कि श्रद्धालुओं और बच्चों से भरी ट्रॉली सड़कों पर दौड़ रही हैं। थाना/पुलिस चौकियों से गुजरते वक्त भी न तो रोक होती है, न चालान, न वाहन सीज। सवाल उठता है कि आखिर मुख्यमंत्री के आदेशों की यह धज्जियां कौन उड़ा रहा है?
मामला फतेहपुर के कई ग्रामीण इलाकों का है, जहाँ से लोग पड़ोसी जिलों व राज्यों में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों जैसे शीतला धाम कड़ा (कौशाम्बी), मनगढ़ (प्रतापगढ़), लोधेश्वर बाबा (बाराबंकी), चित्रकूट धाम, प्रयागराज, अयोध्या, मैहर (मध्य प्रदेश) सहित कई अन्य स्थानीय धाम/घाट/मंदिर आदि की यात्रा पर निकलते हैं। इन यात्राओं के लिए ट्रैक्टरों पर खुले ट्रॉलियाँ लादकर दर्जनों लोगों को बैठा लिया जाता है। ये वाहन न तो यातायात के नियमों का पालन करते हैं और न ही सुरक्षा मानकों का। अक्सर इन ट्रॉलियों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी सवार होते हैं।
सरकार के निर्देश धरे के धरे रह गए
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले कुछ वर्षों में सार्वजनिक सुरक्षा, विशेषकर सड़क दुर्घटनाओं और तीर्थयात्राओं के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इनमें वाहनों में ओवरलोडिंग, हेलमेट, सीट बेल्ट और परमिट संबंधी नियमों का सख्ती से पालन कराने के आदेश शामिल हैं। कई बैठकों में सीएम ने अधिकारियों को नसीहत भी दी है। लेकिन फतेहपुर में ये सभी निर्देश मानो कागजी ही साबित हो रहे हैं।
प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल
स्थानीय निवासी और सामाजिक कार्यकर्ता प्रवीण पाण्डेय का कहना है, "यह आंखों के सामने खेला जा रहा एक खतरनाक खेल है। हर दिन सैकड़ों की तादाद में लोग इन खुले ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में सवार होकर निकलते हैं, लेकिन प्रशासन की कोई सक्रिय भूमिका नजर नहीं आती। थाने, ट्रैफिक पुलिस सबकी नजरों के सामने से ये गुजरते हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं होती।"
पिछले हादसे भी नहीं बने सबक
इस इलाके में ट्रैक्टर-ट्रॉली दुर्घटनाओं का दुखद इतिहास रहा है। पिछले कुछ वर्षों में ऐसी कई घटनाएँ हो चुकी हैं जहाँ ओवरलोडिंग और लापरवाही के कारण जानमाल का नुकसान हुआ है। एक बुजुर्ग ग्रामीण का सवाल है, "क्या प्रशासन को तब तक इंतजार है जब तक कोई बड़ा हादसा नहीं हो जाता? क्या पिछली जानें इतनी सस्ती थीं कि उनसे कोई सबक नहीं लिया गया?"
हादसे और सबक, पर सीख कौन ले रहा?
फतेहपुर, जुलाई 2025: मनगढ़ धाम से लौटते श्रद्धालुओं की ट्रॉली डंपर से टकराई— 2 की मौत, 30 घायल।
कानपुर, 2022: तालाब में पलटी ट्रॉली— 26 श्रद्धालु मारे गए।
बुलंदशहर, अगस्त 2025: ट्रॉली से लौट रहे श्रद्धालुओं की गाड़ी पर ट्रक चढ़ा— 8 मरे, 43 घायल।
इन घटनाओं ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया, लेकिन फतेहपुर सहित कई जिलों में हालात जस के तस हैं। कानपुर हादसे (2022) के बाद योगी सरकार ने आदेश जारी किया कि ट्रैक्टर-ट्रॉली से सवारी ले जाना अपराध है। नियम तोड़ने पर ₹10,000 जुर्माना और वाहन सीज करने का प्रावधान लागू किया गया।
परिवहन विभाग को नियमित अभियान चलाने का निर्देश मिला, पुलिस को चौकियों पर चेकिंग बढ़ाने को कहा गया। बावजूद इसके जमीनी स्तर पर न तो अभियान चले और न ही पुलिस की सख्ती दिखी। नतीजा यह है कि आज भी फतेहपुर और आसपास के गांवों में लोग खुलेआम ट्रॉलियों में सफर कर रहे हैं।
हालांकि कानपुर हादसे के बाद सरकार ने आदेश जारी किया, जुर्माना तय किया, वाहन सीज करने का नियम बनाया। लेकिन हकीकत यह है कि न पुलिस चेकिंग करती है, न परिवहन विभाग मुस्तैद है। नतीजा—फतेहपुर की सड़कें आज भी मौत की दौड़गाह बनी हुई हैं।
प्रशासन का पक्ष
इस मामले पर जब यातायात प्रभारी लाल जी सविता से बात की गई तो उन्होंने कहा, "हम इस मामले में जागरूक हैं। कई बार चेकिंग भी की जाती है और जुर्माना भी लगाया जाता है। लेकिन यह एक सामाजिक समस्या भी है। लोगों के पास परिवहन के सुरक्षित विकल्पों का अभाव है और वे सस्ते साधन के तौर पर ट्रैक्टर-ट्रॉली का इस्तेमाल करते हैं। हम जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं।" आज भी हम कई स्थानों पर कार्यवाही करके आए हैं।
हालाँकि, यह जवाब जमीन पर हो रही अनियंत्रित आवाजाही के आगे नाकाफी लगता है।
कौन होगा जिम्मेदार?
सवाल यह उठता है कि अगर आगे चलकर कोई बड़ा हादसा होता है तो उसकी जिम्मेदारी किस पर होगी? क्या सिर्फ ट्रैक्टर चालक की, या फिर उस प्रशासन की भी जो इस खतरे को रोकने में विफल रहा? जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार और प्रशासन की पहली जिम्मेदारी है, और फतेहपुर में यह जिम्मेदारी गंभीर सवालों के घेरे में है।
अभी भी वक्त है कि प्रशासन इस ओर गंभीरता से ध्यान दे और यातायात के नियमों की अवहेलना करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे, ताकि किसी अनहोनी को होने से पहले रोका जा सके।
विशेषज्ञों की राय
यातायात विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक प्रशासनिक स्तर पर कठोर अभियान, जुर्माना व वाहन जब्ती की कार्रवाई नहीं होगी, तब तक हालात नहीं सुधरेंगे। साथ ही तीर्थयात्राओं और धार्मिक आयोजनों के लिए सरकार को बस या मिनी ट्रक जैसी सुरक्षित सार्वजनिक व्यवस्था उपलब्ध करानी होगी।
यह सवाल केवल प्रशासन से नहीं, जनता से भी है—क्या हमें अपने बच्चों और बुजुर्गों की जान इतनी सस्ती लगती है कि हम उन्हें मौत की ट्रॉली पर बैठा दें?
और प्रशासन से भी सवाल है—अगर योगी का आदेश भी सड़क पर लागू नहीं हो पा रहा, तो फिर सरकार के आदेशों की असली ताकत कहां है?
अब वक्त आ गया है कि इस मौत के सफर पर पूर्णविराम लगाया जाए। वरना अगली खबर शायद यही होगी— “फतेहपुर में फिर पलटी श्रद्धालुओं से भरी ट्रॉली, कई मारे गए…”
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