शनिवार, 1 नवंबर 2025

Exclusive Interview: आँखों की रोशनी और नेत्र स्वास्थ्य पर विशेष बातचीत हर गांव में नेत्र शिविर हो तो अंधत्व पर लगाम लगेगी - डॉ० डी० एस० यादव

- ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से बढ़ रही नेत्र बीमारियाँ, मोबाइल और कंप्यूटर का अत्यधिक प्रयोग मुख्य कारण

- सुझाव — साल में एक बार आँखों की जांच अनिवार्य, लक्षण न होने पर भी जरूरी

- संतुलित आहार और प्राकृतिक रोशनी से आँखें रहेंगी स्वस्थ, डॉक्टर की सलाह के बिना न करें कोई दवा प्रयोग
आज के तकनीकी युग में जहाँ मोबाइल, लैपटॉप और स्क्रीन की चमक ने जीवन को सुविधाजनक बना दिया है, वहीं यही रोशनी धीरे-धीरे हमारी आंखों की असली रोशनी को निगल रही है। हर उम्र का व्यक्ति अब किसी न किसी नेत्र समस्या से जूझ रहा है। बच्चों में चश्मे की बढ़ती संख्या, युवाओं में ड्राई आई सिंड्रोम और बुजुर्गों में मोतियाबिंद जैसी बीमारियाँ आम होती जा रही हैं। इन्हीं गंभीर परिस्थितियों पर प्रकाश डालते हुए संपादक शीबू खान ने वरिष्ठ नेत्र फिजीशियन एवं पलक आई केयर सेंटर (जीटी रोड, बिजली पावर हाउस के सामने, थरियांव, जनपद - फतेहपुर) के संचालक डॉ. डी. एस. यादव से विशेष बातचीत की। डॉ. यादव ने स्पष्ट कहा कि आंखों की रोशनी बचाने के लिए जागरूकता ही सबसे बड़ा इलाज है। उन्होंने बताया कि नेत्र रोग अब केवल बीमारी नहीं रही, बल्कि यह जीवनशैली की गलती और आधुनिक लापरवाही का परिणाम हैं। ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी के कारण अंधत्व के मामले बढ़ रहे हैं, और समय रहते नियमित जांच ही इससे बचाव का सबसे बड़ा उपाय है। प्रस्तुत है बातचीत के कुछ अंश - 

शीबू खान: डॉक्टर साहब, हाल ही में आपने ग्रामीण क्षेत्र में नेत्र शिविर का आयोजन किया, जहाँ सैकड़ों लोगों ने अपनी आँखों की जांच कराई। आप बताएं — आज के समय में लोगों में नेत्र रोग कितने सामान्य हो गए हैं?

डॉ. डी. एस. यादव: जी, आज के समय में आंखों की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। खास तौर पर मोबाइल और कंप्यूटर के लगातार इस्तेमाल, धूल-मिट्टी, और पौष्टिक भोजन की कमी के कारण लोगों में नेत्र संबंधी समस्याएं आम हो गई हैं। ग्रामीण इलाकों में जागरूकता की कमी के कारण लोग देर से इलाज कराते हैं।

शीबू खान: आपके अनुभव में सबसे आम नेत्र रोग कौन-कौन से हैं?

डॉ. डी. एस. यादव: सबसे ज्यादा केस मोतियाबिंद, रेटिना की कमजोरी, आँखों में एलर्जी, सूखापन (Dry Eye) और नंबर बढ़ने के आते हैं। कई लोग चश्मा लगाने से हिचकिचाते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है।

शीबू खान: बच्चों में भी अब चश्मे के केस बढ़ रहे हैं। इसका मुख्य कारण क्या है?

डॉ. डी. एस. यादव: बिल्कुल। बच्चों में चश्मा लगने की बड़ी वजह स्क्रीन टाइम है — टीवी, मोबाइल, टैबलेट का ज्यादा इस्तेमाल। बाहर खेलने और धूप में समय बिताने की आदत लगभग खत्म हो गई है। आँखों को प्राकृतिक रोशनी भी चाहिए होती है, जो अब बच्चों को बहुत कम मिल रही है।

शीबू खान: क्या नियमित आंख जांच करवाना जरूरी है? बहुत लोग सोचते हैं कि जब तक परेशानी न हो, तब तक डॉक्टर के पास न जाएं।

डॉ. डी. एस. यादव: यह एक बड़ी गलती है। आंखों की जांच साल में कम से कम एक बार करवाना चाहिए, भले कोई समस्या न हो। बहुत सी बीमारियाँ शुरुआत में बिना लक्षण के होती हैं — जैसे ग्लूकोमा (काला मोतिया), जो देर से पकड़ में आती हैं।

शीबू खान: आपने हाल ही में 350 लोगों की जांच की और 100 मरीजों को चश्मा तथा 220 को दवा दी। क्या आपको लगता है कि ग्रामीण इलाकों में ऐसे नेत्र शिविरों की संख्या बढ़नी चाहिए?

डॉ. डी. एस. यादव: बिल्कुल। गांवों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी है। शिविर लोगों को न सिर्फ उपचार बल्कि जागरूकता भी देते हैं। अगर सरकारी और सामाजिक संस्थाएं मिलकर हर महीने एक शिविर लगाएं, तो बहुत बड़ा फर्क आ सकता है।

शीबू खान: आंखों की सेहत बनाए रखने के लिए आम लोगों को आप क्या सुझाव देना चाहेंगे?

डॉ. डी. एस. यादव: मोबाइल या कंप्यूटर इस्तेमाल करते समय हर 20 मिनट बाद 20 सेकंड तक दूर देखें। संतुलित आहार लें, हरी सब्जियां और विटामिन-ए युक्त भोजन करें।
तेज धूप या धूल में सनग्लास पहनें। आंखों में कोई दवा डॉक्टर की सलाह के बिना न डालें। साल में एक बार आंखों की जांच जरूर कराएं। 

शीबू खान: बहुत उपयोगी जानकारी दी आपने डॉक्टर साहब, आपका बहुत धन्यवाद।

डॉ. डी. एस. यादव: धन्यवाद, और मैं भी मीडिया से अपील करता हूँ कि नेत्र स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक करने में सहयोग करें।

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