सोमवार, 7 जुलाई 2025

मुहर्रम: लब्बैक या हुसैन की सदाओं के साथ दफन हुए ताजिया

- बहेरा सादात में होता है खागा तहसील का सबसे बड़ा मोहर्रम
- प्रदीप गौतम ने किया जलते अंगारों पर मातम
- बहेरा सादात एवं सुल्तानपुर घोष में मुल्क की तरक्की व अमन - चैन की मांगी गई दुआ

फतेहपुर। बहेरा सादात में दस मोहर्रम पर होने वाला खागा तहसील का सबसे बड़ा जुलूस होता है जिसमें आस - पास के दर्जनों गांवों से हिंदू - मुस्लिम शिरकत करते हैं। अज़ादार बहेरा सादात नौबस्ता रोड होते हुए दो किलोमीटर पैदल नंगे पैर ग़म के माहौल में चेहरों पर उदासी, दिलों में हुसैनी जज़्बा लिए काले कपड़ों में लब्बैक या हुसैन के नारे लगाते हुए सीनों पर मातम करते धीरे - धीरे करबला की तरफ़ बढ़ते हैं और दुआ करते हैं कि करबला के शहीदों का गम हमारे दिलों में हमेशा कायम रहे और हम यूं ही ग़मे हुसैन मनाते रहें।
नौ मोहर्रम जिसे शबे आशूर के नाम से जाना जाता है। इसी मौके पर आब्दी मंज़िल से रात 10 बजे चुप ताज़िया निकला और पूरे गांव का भ्रमण करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष शहंशाह आब्दी के आवास पर वापस आया। फिर इसी स्थान पर जलते अंगारों पर मातम का सिलसिला शुरू हुआ जहां प्रदीप कुमार गौतम इमाम हुसैन के प्रति सच्ची श्रद्धा रखते हुए दहकते अंगारों पर या हुसैन कहते हुए निकले। साथ ही छोटे - छोटे बच्चों ने लब्बैक या हुसैन के नारों के साथ जलते अंगारों पर मातम कर अपने हुसैनी होने का सबूत दिया। बताते चलें की दस मोहर्रम वह दिन है जिसे आशूर का दिन कहा जाता है। करबला में आज की वह आखिरी जंग थी जिस जंग में इमाम हुसैन ने अपने 6 महीने के बच्चे अली असगर की कुर्बानी पेश की और अपने बहत्तर साथियों के साथ करबला में तीन दिन की भूख - प्यास के साथ ऐसी जंग की जिसे कयामत तक कोई भुला नहीं सकता।
मोहर्रम की नौ तारीख यानी शबे आशूर की रात इमाम हुसैन ने यज़ीद से एक रात की मोहलत मांगी थी जिससे वे सारी रात अल्लाह की इबादत कर सकें और दूसरा मकसद ये भी था कि शायद यजीद इस रात अपने गुनाहों से तौबा कर ले और जंग न करे। इमाम हुसैन ने इस रात की मोहलत अपने लिए तो इबादत के हिसाब से मांगी लेकिन इस्लामी कानून के हिसाब से यजीद को हुसैन ने एक रात की मोहलत ये सोचने के लिए दी जिससे यजीद इस आखरी रात में सोच ले कि हक़ क्या है और बातिल क्या है लेकिन यजीद की किस्मत में तो जहन्नम लिख चुकी थी। उसने इस रात का कोई फायदा नहीं उठाया लेकिन यजीद की फौज का वह कमांडर जिसने करबला के रास्ते में इमाम हुसैन के काफिले को रोका था, यजीद से बोला कि मुझे नहीं पता था कि बात यहां तक बढ़ जाएगी कि तू इमाम हुसैन को बिना किसी खता के शहीद कर देगा। मैं तेरे लश्कर से नाता तोड़ रहा हूं और मैं इमाम हुसैन के साथ जा रहा हूं। ये कह कर जो पहले सिर्फ हुर के नाम से जाने जाते थे, हुसैन के पास आने से उनका रुतबा बलंद हो गया और वो जनाबे हुर बन गए। इस आखरी रात ने जनाबे हुर की किस्मत ही पलट दी। हुसैन से माफी मांगी और यज़ीद के लश्कर से जंग करते हुए शहीद हो गए।
करबला के शहीदों की याद में फाका शिकनी के लिए बसपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री रहे इंतेज़ार आब्दी उर्फ बाबी, उनके भाई मुश्ताक आब्दी उर्फ लाला, इश्तियाक आब्दी उर्फ राजू ने अपने आब्दी फिलिंग स्टेशन पर शरबत की सबील लगवाई और पचास डेग खिचड़े का इंतेज़ाम किया ताकि फाका रखने वालों को परेशानी न हो सके। करबला की शहादत पर रौशनी डालने के लिए जिला अम्बेडकर नगर के मौलाना सय्यद अज़ीम रिज़वी ने बताया कि आज के दिन जो भी जंग में गया है वह वापस नहीं आ सका। तीन दिन की भूख प्यास के बाद आज कर्बला में इमाम हुसैन का भरा घर उजड़ गया। इमाम हुसैन का वह बेटा जिसकी उम्र अभी सिर्फ छह महीने की थी, यजीदी लशकर ने उस बच्चे को भी शहीद कर दिया। इमाम हुसैन ने सब्र का दामन नहीं छोड़ा और न ही यज़ीद के आगे झुके।
बहेरा चौकी पर मौलाना ने भाई चारे और राष्ट्रीय एकता पर तकरीर करते हुए बताया कि जिसे करबला में मुसलमानों ने क़त्ल किया था वह कोई और नहीं बल्कि मोहम्मद साहब के नवासे थे। अली के बेटे थे जो करबला में हक़ की लड़ाई में शहीद हुए। अपने नाना मोहम्मद साहब के दीन को बचाने के लिए अपना भरा घर कुर्बान कर दिया लेकिन इस्लाम को बचा कर मुसलमानों पर जो एहसान किया है उसे कयामत तक भुलाया नहीं जा सकता। इस मौके पर थाना सुल्तानपुर घोष पुलिस की अच्छी व्यवस्था रही। सब इंस्पेक्टर दिलीप यादव, शिवानंद, इबरार खान लगातार जुलूस की व्यवस्था में शामिल रहे। इंस्पेक्टर तेज बहादुर सिंह और खागा सीओ ब्रज मोहन राय द्वारा अच्छी पुलिसिंग के लिए मोहर्रम के आयोजक वरिष्ठ पत्रकार एवं साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष शहंशाह आब्दी ने पुलिस स्टाफ के प्रति आभार व्यक्त किया।
वहीं सुल्तानपुर घोष गांव में अकीदतमंदों ने करबला का गम मनाते हुए ताजिया उठाया और नवजवानों ने मातम किया और लोगों ने जगह - जगह मौला हुसैन के नाम का लंगर लुटाया। अंत में ताजिया को करबला ले जाकर सुपुर्दे खाक किया और मुल्क में तरक्की व अमन - चैन की दुआ मांगी गई। इसी प्रकार समूचे जनपद में मुहर्रम मनाया गया है।

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